पूर्व पदयुक्त सेवा

1. जीवनमुक्त : श्री राम आधार शान्ति केन्द्र, सरईंयाँ, मिर्जापुर- उ. प्र.

2. मुख्य दार्शनिक : सनातन धर्म रक्षा मंच, लुधियाना, पंजाब

3. मुख्य अतिथि संपादक : अमेरिकन साइंस एण्ड एजुकेशन पब्लिकेशन

4. तत्वदर्शी : वंशराज विश्व दर्द उन्मूलन केंद्र, वाराणसी- उ. प्र. भारत

5. अध्यक्ष एवं निदेशक : विश्व स्वास्थ्य, आदर्श मानव धर्म एवं शान्ति केंद्र

6. विलक्षण वैज्ञानिक :महिमा रीसर्च फाउंडेशन एण्ड सोशल वेलफेयर

7. पूल वैज्ञानिक : जीव विज्ञान प्रतिष्ठान, भुवनेश्वर, उड़ीसा, भारत


।।श्रीराम। जय राम। जय जय राम।।


दिव्य ज्ञान एवं अनन्य भक्ति हेतु

 प्रिय श्रद्धालु मित्रों, 

जय श्री राम, 

            सम्पूर्ण विश्व (ब्रह्माण्ड) मात्र परमात्मा श्री रामजी की माया के तीन गुणों का विस्तार है। इस सृष्टि में दुर्लभ मानव शरीर के स्वार्थरहित निष्ठायुक्त भाव,  प्रेरणा, बुद्धि और मानसिक स्थिति पवित्र आचरण के मुख्य आधार होते हैं। बहुत ही संक्षेप में, इस बात का अनुभव कर लें कि 'मैं' और 'मेरा', 'तू' और 'तेरा'- यही माया है, जिसने सभी जीवों को वश में कर रखी  है। आपके इस मित्र "डॉ रवि शंकर पाण्डेय" की बुद्धि इस भ्रम के बाहर आ चुकी है। स्थाई अस्तित्व केवल परमपिता परमात्मा श्री रामजी का ही है, जिनसे हम सभी जीव उत्पन्न हुए हैं। प्रभु श्री रामजी से अलग किसी जीव का कोई अस्तित्व है ही नहीं। यह बुद्धि पिछले सात (7) वर्षों से लगातार  पूर्ण भाव से भगवान श्री रामजी की आराधना कर रही है। मन  भवसागर से बिल्कुल मुक्त होकर परमात्मा श्री रामजी की सेवा में लगा हुआ है। मनुष्य जन्म का परम उद्देश्य श्री रामजी को जानना है। आपके इस मित्र की बुद्धि को ब्रह्माण्ड के इकलौते शासक श्री शंकरजी की कृपा से परमात्मा श्री रामजी का बोध मकर संक्रांति के महापर्व पर मंगलवार, 14 जनवरी 2014 को हो गया। श्री शिवजी की विशेष प्रेरणा से शोध पत्र "अध्यात्म, आयुर्वेद, आधुनिक योग और वास्तविक विज्ञान द्वारा स्वास्थ्य, आदर्श मानव धर्म एवं शान्ति" के माध्यम द्वारा नोबेल वैज्ञानिकों सहित सम्पूर्ण विश्व को अवगत कराया गया। अमेरिकी नोबेल वैज्ञानिकों द्वारा इस प्रेरणा का अनुभव करने के बाद, लोग आपके इस मित्र को पृथ्वी से मानसिक रोगों का जड़ से उन्मूलन और सतयुग की स्थापना के लिए अमेरिकी विज्ञान और शिक्षा प्रकाशन विभाग के मुख्य वैज्ञानिक (मुख्य अतिथि संपादक) के रूप में नियुक्त किए। पृथ्वी के विश्व संसदीय धर्मों के संगठन सहित सभी धर्मगुरुओं, महामंडलेश्वर, शंकराचार्य, सिद्ध, संतों, साधकों, मुक्त, उदासीन, राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, नोबेल वैज्ञानिकों और सभी दयालु प्राणियों को विनम्र भाव के साथ शोध पत्र लिखने का अवसर दिया गया। मोह में अंधे और लोभ से बहरे सम्पूर्ण विश्व से एक भी प्राणी सन्मुख नहीं हुआ- अर्थात धरती पर उपस्थित धर्म के नाम पर सभी सम्प्रदाय और विश्व धर्म संगठन स्वत: पाखण्डी सिद्ध हो चुके हैं। इसमें किसी जीव का कोई दोष नहीं है। यह मात्र युग का प्रभाव है।  भगवत मार्ग पर चलकर इस प्रभाव को दूर किया जा सकता है। 

            जब सम्पूर्ण पृथ्वी से एक भी प्राणी मन को पवित्र नहीं करना चाहा, तब प्रभु श्री शिवजी की प्रेरणा से चारों आश्रमों का परित्याग हो गया। अब संशय के आकार (संसार) से स्वार्थ का कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहा। सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड में कुछ भी पाना शेष नहीं रहा। संक्षेप में, सृष्टि के सभी भोग- विलास, ऐश्वर्य और पद से मन मुक्त हो चुका है, जिसे जीवन-मुक्त की अवस्था कहते हैं। इस मन: स्थिति में बुद्धि अनन्य भक्ति से प्रेरित हुई और जीवन की शेष सभी श्वाँसें पूरी श्रद्धा और पूर्ण विश्वास के साथ ब्रह्माण्ड के एकमात्र ईश्वर श्री शिवजी के कमलवत चरणों में समर्पित हो गई। श्री शिवजी की प्रेरणा से यह सभी बातें केवल आप जीवों को ईश्वर का अंश समझकर उद्घोषित हो रही है, न कि प्रकृति का विकसित सामाजिक प्राणी। विगत 4 वर्षों से आपका यह मित्र अनन्त की अवस्था में श्री राम आधार शान्ति केन्द्र पर स्थिर है। परमात्मा का बोध करना एवं कराना मनुष्य मात्र के लिए श्री कृष्ण भगवान का दिव्य उपदेश है। इस कर्म में मायाशक्ति के सभी तीन गुणों का कोई उपयोग नहीं है, इसलिए तीनों गुणों से ऊपर (गुणातीत) उठने की आवश्यकता नितांत आवश्यक है। श्री शिवजी की प्रेरणा से विश्व का कोई प्राणी यदि बुद्धि को कपट से मुक्त करने की निष्ठा को प्राप्त होगा, तो आपके इस मित्र की आवश्यकता होगी, उसके पहले किसी भी स्थिति में नहीं। आपकी इस मित्र की बुद्धि में तृष्णा के एक कण का भी स्थान नहीं है। वर्तमान भाव को अनुभव करने के लिए श्री शिवजी की प्रेरणा और अकल्पनीय संकल्प की समीक्षा भली-भाँति कर लें। अब संसार जगत में मात्र भक्ति का ही नाता रहा, शेष सभी सपनें, कामनायें एवं भावनायें श्री शिवजी के चरणोंमें समर्पित हो गयी। भक्ति का नाता किसी भी काल में एवं किसी भी युग में समाप्त हो  ही नहीं सकता। श्रद्धालु मित्र!  जो मानव शरीर से अपने परमकल्याण की  इच्छा रखते हैं- अपने मन, बुद्धि और चित् को कपट से मुक्त करके भगवान "श्री कृष्णजी", "श्री शिवजी"और "श्री रामजी" मे दोष रहित होकर क्रमशः "श्रीमद्भगवद्गीता", "श्रीरामचरितमानस" और "विनय पत्रिका" का आत्मसात करें। परम कल्याण के लिए वर्तमान बुद्धि के अलौकिक अनुभव को "यूट्यूब" से प्राप्त करके अपनी मातृभाषा में रूपांतरित कर लें। श्रवण, समीक्षा और धारणा के माध्यम से भगवान की अनन्य भक्ति को प्राप्त करें।

  1. मानव परमकल्याण हेतु व्यक्तिगत-वृत्ति

  2. मानव परमकल्याण हेतु जीवनी

श्री शिवजी का एक निष्ठावान सेवक

डॉ. रवि शंकर पाण्डेय




जय श्री राम